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अपने माहौल को सुधारें: फ़र्स्ट क्लास बनें | Badi Soch Ka Bada Jadoo | The Magic of Thinking Big By David J. Schwartz in Hindi

Badi Soch Ka Bada Jadoo | The Magic of Thinking Big By David J. Schwartz Book Summary in Hindi

Badi Soch Ka Bada Jadoo | The Magic of Thinking Big By David J. Schwartz Book Summary in Hindi
Manage Your Environment: Go First Class | अपने माहौल को सुधारें: फ़र्स्ट क्लास बनें 


        💕Hello Friends,आपका स्वागत है www.learningforlife.cc में। इस पोस्ट में "Badi Soch Ka Bada Jadoo | The Magic of Thinking Big" By David J. Schwartz Book के 7th chapter से हम जानेगे कि क्यों मस्तिष्क पर माहौल का बहुत प्रभाव पड़ता है, सफलता के लिए हमें किस माहौल में रहना चाहिए और कैसे अपने माहौल को सुधारें और फ़र्स्ट क्लास बनें......

        आपका दिमाग़ एक अद्भुत मशीन है। जब आपका दिमाग़ एक तरीक़े से काम करता है, तो यह आपको असाधारण सफलता के रास्ते पर आगे ले जा सकता है। परंतु वही दिमाग़ जब दूसरे तरीक़े से काम करता है तो यह आपको पूरी तरह असफल करा सकता है। मस्तिष्क पूरी सृष्टि में सबसे नाज़ुक, सबसे संवेदनशील यंत्र है। आइए देखें कि मस्तिष्क में जो विचार आते हैं वे क्यों आते हैं।

        करोड़ों लोग अपने खान–पान का ध्यान रखते हैं। हम विटामिन, मिनरल और दूसरे food supplements पर करोड़ों डॉलर ख़र्च करते हैं और हम सब जानते हैं कि हम ऐसा क्यों करते हैं। पोषण पर हुई research से हमने यह जाना है कि शरीर को हम जो आहार देते हैं, उसका शरीर पर अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है। शारीरिक स्टैमिना, बीमारी से बचाव, शरीर का आकार यहाँ तक कि हम कितना लंबा जिएँगे – इन सबका संबंध हमारे खान–पान से होता है।

        शरीर वैसा ही बनता है जैसा भोजन शरीर को खिलाया जाता है। इसी तरह दिमाग़ वैसा ही बनता है जैसा भोजन दिमाग़ को खिलाया जाता है। दिमाग़ का भोजन पैकैटों या डिब्बों में नहीं आता और आप इसे किसी स्टोर में नहीं ख़रीद सकते। आपका माहौल ही आपका दिमाग़ी भोजन है– और इसमें वे अनगिनत चीजें आ जाती हैं जिनसे आपका चेतन और अवचेतन विचार प्रभावित होता है। हम किस तरह का दिमाग़ी भोजन करते हैं इससे हमारी आदतें, रवैए और व्यक्तित्व निर्धारित होते हैं। हममें से हर एक को कोई न कोई ख़ास क्षमता विरासत में मिली है, जिसका विकास हम कर सकते हैं। परंतु हम उस क्षमता को कितना और किस तरह विकसित कर पाते हैं, यह हमारे दिमाग़ी भोजन पर निर्भर करता है। मस्तिष्क पर माहौल का बहुत प्रभाव पड़ता है जिस तरह कि शरीर पर भोजन का पड़ता है।

        इसे ध्यान से समझ लें। माहौल हमें आकार देता है, हमें सोचने का तरीक़ा देता है। आप एक भी ऐसी आदत नहीं गिना सकते जो आपने दूसरों से न सीखी हो। छोटी-छोटी चीजें जैसे आपकी चाल, खाँसने का तरीक़ा, कप पकड़ने का अंदाज़, आपका संगीत, साहित्य, मनोरंजन, कपड़ों का शौक़ – सभी हमारे माहौल की देन हैं।

        अगर आप नकारात्मक लोगों के साथ ज़्यादा समय तक रहेंगे तो आपकी सोच नकारात्मक हो जाएगी, छोटे लोगों के साथ निकट संपर्क रहने पर आपमें छोटी आदतें आ जाएँगी। दूसरी ओर, बड़े विचारों वाले लोगों के साथ रहने पर आपकी सोच का स्तर भी ऊँचा हो जाएगा। महत्वाकांक्षी लोगों के निकट संपर्क में रहने पर आपमें भी महत्वांकाक्षा आ जाएगी।

सफलता के लिए ख़ुद को ढालें।

        ऊँचे स्तर की सफलता की राह में सबसे पहली बाधा यह भावना है कि महान सफलता हमारी पहुँच के बाहर है। यह रवैया कई, ढेर सारी दमनकारी शक्तियों से उपजता है जो हमारी सोच को औसत स्तर का बनाए रखती हैं।

        इन दमनकारी शक्तियों को समझने के लिए हमें अपने बचपन की तरफ़ नजर डालनी होगी। बचपन में हम सभी के लक्ष्य काफ़ी ऊँचे हुआ करते हैं। और अपने अज्ञान में हम साफ़ रास्ता देख सकते हैं कि हम इन लक्ष्यों को हासिल कर लेंगे। परंतु होता क्या है? इसके पहले कि हम उस उम्र में आएँ जब हम अपने महान लक्ष्यों की तरफ़ आगे क़दम बढ़ा सकें, बहुत सी दमनकारी शक्तियाँ हम पर हावी हो जाती हैं।

        For example: हर तरफ़ से हम सुनते हैं, “सपने देखना मूर्खता है,” और यह कि हमारे विचार “अव्यावहारिक, मूर्खतापूर्ण, नादानी भरे या बकवास हैं", “सफल होने के लिए आपके पास ढेर सारा पैसा होना चाहिए,”, “आप सफल तभी हो सकते हैं जब या तो आपकी किस्मत अच्छी हो या फिर आपके बहुत से महत्वपूर्ण दोस्त हों,” या आप अभी “ज़्यादा बूढ़े” या “ज़्यादा युवा” हैं।

        “आप–आगे–नहीं–बढ़–सकते–इसलिए–कोशिश–करने–से–कोई–फ़ायदा नहीं” वाला प्रचार आपके दिमाग़ पर बमबारी करके उसे ध्वस्त कर देता है और इसका result यह होता है कि ज़्यादातर लोगों को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है :

पहला समूह - जिन्होंने पूरी तरह घुटने टेक दिए हैं

        ज़्यादातर लोग अंदर से यह मान चुके हैं कि उनके पास जरुरी योग्यता नहीं है। असली सफलता, असली उपलब्धि दूसरों के लिए है जो किसी मायने में आपसे ज़्यादा भाग्यवान या तक़दीर वाले हैं। आप ऐसे लोगों को आसानी से पहचान सकते हैं क्योंकि वे काफ़ी देर तक आपको यह समझाते हैं कि वे अपने जीवन से क्यों संतुष्ट हैं और वे सचमुच कितने “ख़ुश” हैं।

दूसरा समूह- वे लोग जिन्होंने आंशिक रूप से समर्पण किया है

        यह समूह व्यस्त जीवन में जब प्रवेश करता है तो उसे सफलता की काफ़ी आशा होती है। ऐसे लोग अपने आपको तैयार करते हैं। वे मेहनत करते हैं। वे योजना बनाते हैं। परंतु, एक या दो दशक बाद, उनकी प्रेरणा की आग ज़माने की नकारात्मक हवाओं से बुझने लगती है, ऊँचे पदों के लिए प्रतियोगिता करने का उनका उत्साह ठंडा पड़ने लगता है। यह समूह तब फ़ैसला करता है कि महान सफलता उनकी पहुँच के बाहर है।

तीसरा समूह- वे लोग जिन्होंने कभी समर्पण नहीं किया

        यह समूह जिसमें शायद दो या तीन प्रतिशत लोग ही आते होंगे, अपने दिमाग़ में निराशा को कभी हावी नहीं होने देता। ऐसा व्यक्ति दमनकारी शक्तियों के सामने समर्पण नहीं करता। वह घुटनों के बल चलने में विश्वास नहीं करता। इसके बजाय, यह लोग सफलता की साँस लेते हैं, सफलता का जीवन जीते हैं। यह समूह सबसे सुखी होता है क्योंकि इसकी उपलब्धियाँ सबसे ज़्यादा होती हैं। ये लोग चोटी के सेल्समैन, एक्ज़ीक्यूटिव, और हर क्षेत्र के लीडर बन जाते हैं। इन्हें अपना जीवन रोमांचक, प्रेरक, बहुमूल्य और महत्वपूर्ण लगता है। यह लोग हर नए दिन का स्वागत करते हैं, दूसरे लोगों के साथ उत्साह से मिलते हैं और हर दिन का पूरी तरह आनंद उठाते हैं।

        अब ईमानदारी से सोचें। क्या हम सभी तीसरे समूह में होना पसंद करेंगे, ऐसे समूह में जिसे हर साल ज़्यादा बड़ी सफलताएँ मिलती जाती हैं, ऐसे समूह में जहाँ बड़े काम होते हैं और उनके बड़े परिणाम मिलते हैं।

        मान लीजिए आप अपने “औसत” दोस्तों से पूरी गंभीरता से यह कहें, “किसी न किसी दिन मैं इस कंपनी का वाइस–प्रेसिडेंट बनकर दिखाऊँगा।” यह सुनकर उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आपके दोस्त शायद यह सोचेंगे कि आप मज़ाक़ कर रहे हैं। और अगर उन्हें यक़ीन हो जाए कि आप गंभीर हैं, तो शायद वे यह कहेंगे, “नादान आदमी, तुम्हें अभी ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखना है।” आपकी पीठ पीछे वे तो यहाँ तक कहेंगे कि आपके दिमाग़ के पेंच ढीले हो गए हैं या आपका दिमाग़ खिसक गया है।

        अब हम यह मान लें कि आप अपनी कंपनी के प्रेसिडेंट से यही बात इतनी ही गंभीरता से कहते हैं। उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? चाहे जो हो, एक बात तो पक्की है : वह हँसेगा नहीं। वह आपकी तरफ़ ग़ौर से देखेगा और ख़ुद से पूछेगा, “‘क्या यह आदमी गंभीर है?” परंतु वह, मैं एक बार फिर दोहरा दूँ, हँसेगा नहीं। क्योंकि बड़े लोग बड़े विचारों पर हँसा नहीं करते।

इन नियमों का पालन करके आप भी अपने सामाजिक माहौल को फ़र्स्ट क्लास बना सकते हैं :


1.नए समूहों में आएँ – जाएँ।

        हर तरह के लोगों के बारे में जानें, उनसे सीखें, उनका अध्ययन करें। केवल एक समूह का अध्ययन करके लोगों के बारे में जानकारी हासिल करने का विचार उसी तरह का है जिस तरह एक छोटी-सी पुस्तक पढ़कर गणितज्ञ बनने का विचार। नए दोस्त बनाएँ, नए संगठनों में शमिल हों, अपने सामाजिक दायरे को बढ़ाएँ। इसके अलावा अलग-अलग लोगों से मिलने से आपके जीवन का आनंद बढ़ जाता है और आपकी सोच व्यापक होती है। यह आपके दिमाग़ के लिए अच्छा भोजन है।

2.ऐसे दोस्त चुनें जिनके विचार आपसे अलग हों।

        आज के आधुनिक युग में, संकीर्ण विचारधारा (narrow minded) के व्यक्ति का भविष्य बहुत उज्जवल नहीं है। ज़िम्मेदारी और महत्वपूर्ण पद उसी व्यक्ति को मिलते हैं जो दोनों पहलुओं को देख सकता है। अगर आप रिपब्लिकन हैं, तो आपके कुछ दोस्त डेमोक्रेट होने चाहिए और अगर आप डेमोक्रेट हैं तो आपके कुछ दोस्त रिपब्लिकन होने चाहिए। दूसरे धर्म के लोगों से मिलें। अपने विपरीत स्वभाव के लोगों से दोस्ती करें। परंतु इस बात को सुनिश्चित कर लें कि उनकी मानसिकता भी प्रगतिशील हो, उनमें भी सफलता की चाह हो।

3.ऐसे दोस्त चुनें जो छोटी, महत्वहीन बातों से ऊपर उठ सकते हों।

        जो लोग आपके विचारों या अपकी चर्चा के बजाय आपके घर के सामान या सजावट में रुचि लेते हैं वे छोटी मानसिकता के लोग होते हैं। अपने मनोवैज्ञानिक माहौल की रक्षा करें। ऐसे दोस्त चुनें जो सकारात्मक चीज़ों में रुचि रखते हों। ऐसे दोस्त चुनें जो आपको सचमुच सफल देखना चाहते हों। ऐसे दोस्त बनाएँ जो आपकी योजनाओं और आदर्शों में उत्साह भर दें। अगर आप ऐसा नहीं करते, अगर आप घटिया सोच वालों को अपना सबसे पक्का दोस्त बनाते हैं, तो आप भी धीरे–धीरे एक घटिया चिंतक में बदल जाएँगे।

आप कितना गपियाते हैं या आपकी गप्प में कितनी रुचि है। यह जानने के लिए खुद से पूछे -


  • क्या मैं दूसरों के बारे में अफ़वाह फैलाता हूँ? 
  • क्या मैं दूसरों के बारे में अच्छी बातें कहता हूँ? 
  • क्या मुझे स्कैंडल सुनना अच्छा लगता है? 
  • क्या मैं केवल तथ्यों के आधार पर ही किसी का मूल्यांकन करता हूँ? 
  • क्या मैं दूसरों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता हूँ कि वे मुझे अफ़वाहें सुनाएँ? 
  • क्या मैं अपनी चर्चा को इस बात से शुरू करता हूँ, “देखना किसी से कहना नहीं?” 
  • क्या मैं गोपनीय जानकारी को पूरी तरह गोपनीय रखता हूँ? 
  • क्या मैं दूसरों के बारे में बोलते समय अपराधबोध से ग्रस्त रहता हूँ?

सफलता का माहौल कैसे तैयार करें

1.माहौल के प्रति सचेत बनें। जिस तरह अच्छा भोजन शरीर को शक्ति देता है, उसी तरह अच्छे विचार आपके मस्तिष्क को शक्ति देते हैं। 

2.अपने माहौल को अपना सहयोगी बनाएँ, अपना विरोधी नहीं। दमनकारी शक्तियों, नकारात्मक लोगों, आप – ऐसा – नहीं – कर – सकते कहने वाले लोगों को अपना हौसला पस्त न करने दें। 

3.छोटी सोच वाले लोगों के चक्कर में न आएँ। ईर्ष्यालु लोग तो चाहते ही हैं कि आप आगे न बढ़ पाएँ। उन्हें ख़ुश होने का मौक़ा न दें। 

4.सफल लोगों से सलाह लें। आपका भविष्य महत्वपूर्ण है। फोकटिया सलाहकारों से सलाह लेने का जोखिम न लें, क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि असफल लोग ही फोकटिया सलाहकार होते हैं। 

5.बहुत–सी मनोवैज्ञानिक ऊर्जा हासिल करें। नए समूहों में आएँ – जाएँ। 
 
6.अपने माहौल से वैचारिक ज़हर को दूर रखें। गपशप से, निंदा से बचें। लोगों के बारे में बातें करें, परंतु सकारात्मक पहलू से। 

7.अपने हर काम में फ़र्स्ट क्लास रहें। आप दूसरे किसी तरीके़ से काम करने का जोखिम नहीं उठा सकते।

☝ यह Summary है "बड़ी सोच का बड़ा जादू | The Magic of Thinking Big" By David J. Schwartz book के 7th chapter की। यदि detail में पढ़ना चाहते है तो इस book को यहां से खरीद सकते है 👇



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