Trending

अच्छा बोलने की कला और कामयाबी | Public Speaking for Success by Dale Carnegie Book Summary in Hindi

Achchha Bolne Ki Kala Aur Kamyabi | Public Speaking for Success by Dale Carnegie

अच्छा बोलने की कला और कामयाबी | Public Speaking for Success by Dale Carnegie Book Summary in Hindi
अच्छा बोलने की कला और कामयाबी | Public Speaking for Success by Dale Carnegie Book Summary in Hindi

        💕Hello Friends,आपका स्वागत है www.learningforlife.cc में। प्रखर वक्ता होना, जीवंत वाणी का स्वामी होना, प्रभावी शैली में श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर देने की क्षमता जिसमें हो, वह सामान्य व्यक्ति की तुलना में अधिक सफल होने की संभावना रखता है। बातचीत करना भाषण की कला सीखने का सबसे पहला सिद्धांत है - यानि बोलिए, discussion में हिस्सा लीजिए, अपनी प्रतिभा का खुद आकलन कीजिए और दर्शकों की आलोचना से सीखने की कोशिश कीजिए। सवाल यह है कि महान वक्ता में कौन से विशेष गुण होते हैं और उन गुणों को कैसे प्राप्त किया जा सकता है? खुद के व्यक्तित्व में ऐसी कौन सी कमी है, जो इन गुणों की प्राप्ति में बाधा बन सकती है? इस पोस्ट में इन्ही topics के बारे में महान् लेखक डेल कारनेगी की सदाबहार एवं सर्वाधिक पसंद की जानेवाली book "अच्छा बोलने की कला और कामयाबी" से बताया जा रहा है। जिसके द्वारा कोई भी सामान्य व्यक्ति दर्शकों के सामने बोलने के क्षेत्र में कामयाबी के शिखर तक पहुँच सकता है।

1.दर्शकों के सामने भरोसा हासिल करना

        किसी लेख को पढ़कर मंच के डर से मुक्त होना संभव नहीं है। Book के जरिए पानी में बरताव करने के उत्तम सुझाव तो मिल सकते हैं, लेकिन तैराकी सीखने के लिए पानी में छलाँग लगानी ही पड़ती है। भाषण से पहले अभ्यास, अभ्यास और केवल अभ्यास के जरिए ही दर्शकों के सामने पैदा होनेवाले डर से मुक्त हुआ जा सकता है। जैसे तैराकी में विश्वास जमाने के लिए अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है, उसी तरह बोलने के जरिए ही बोलने का पाठ सीखा जाता है। यदि शुरुआती दौर में मंच से डर लगता है तो इससे निराश नहीं होना चाहिए। निपुण-से-निपुण वक्ता कुछ अनजाने कारणों की वजह से आज तक मंच के भय से नहीं उबर पाए हैं।

        घोड़े के खुरों में नाल ठोंकते वक्त कई बार लोहार घोड़े के नथनों में कसी नकेल को कस देते हैं। इस तरह घोड़े का ध्यान नाल ठोंकने की प्रक्रिया से हट जाता है। गिलास में मौजूद हवा निकालने के लिए उसमें पानी भरना पड़ता है। भाषण देते वक्त लोहार के घरेलू नुस्खों का पालन करना चाहिए। यदि आप भाषण से संबंधित विषय को गहराई से समझते हैं तो अतिरिक्त सोचने का रास्ता खुद-ब-खुद खुल जाता है। एकाग्रता भटकाव से मुक्ति पाने का एक सरल उपाय है। मंच पर पहुँचने के बाद अपने कोट में मौजूद छेद के बारे में सोचना व्यर्थ है। मंच पर केवल अपने भाषण पर ध्यान एकाग्र करना चाहिए। दिमाग में केवल भाषण से संबंधित सामग्री का विचार होना चाहिए। जैसे पानी भरकर गिलास से हवा को बाहर निकाला जा सकता है, उसी प्रकार विचारों के माध्यम से उत्तेजना और भय से भी छुटकारा पाया जा सकता है। व्याकुलता अनावश्यक व्याकुलता को जन्म देती है।

        विषय की संपूर्ण जानकारी होना पर्याप्त तैयारी नहीं मानी जा सकती। आत्मविश्वास हासिल करने के लिए विषय विशेष पर पकड़ मजबूत होनी चाहिए। बिना तैयारी या विषय के बारे में कम जानकारी के साथ दर्शकों के सामने पहुँचने पर वक्ता व्याकुल प्रतीत होता है। दर्शकों का समय खराब करने के लिए शर्म का भी आभास होता है। इसलिए बेहतर है कि उचित तैयारी के साथ मंच पर पहुँचा जाए। भाषण से पहले विचार और विचार प्रस्तुत करने का अंदाज निश्चित कर लेना चाहिए। शुरुआती वाक्यों की तैयारी बेहद अच्छी होनी चाहिए। ऐसा करने से भाषण के शुरुआत में सही और सटीक शब्द खोजने में वक्त खराब नहीं होता। इसके अलावा, भाषण के विषय पर मजबूत पकड़ से डर हावी नहीं होता।

2.एक जैसे ढंग की नीरसता

        एक ही ढंग से बोलने वाले वक्ताओं का स्वर एवं लहजा ही नहीं, बल्कि शब्दों पर जोर देने का तरीका, गति और विचार भी समान रूप से नीरस होते हैं। एक जैसा ढंग बोलने से केवल अपराध नहीं, बल्कि एक मामूली सी चूक की वजह से होनेवाला गुनाह है। मान ले आपके बगलवाले मकान में यदि केवल तीन गानों को बार-बार जोर से बजाया जाए तो यकीनन आप मान लेंगे कि आपके पड़ोसी के पास केवल तीन गानों का ही collection है। इसी प्रकार, यदि वक्ता एक जैसी ऊर्जा के साथ भाषण देता रहे तो मान लिया जाता है कि वक्ता के स्वरों के उतार-चढ़ाव की क्षमता विकसित ही नहीं हुई है। दरअसल एक जैसे ढंग से बोलना हमारी सीमाओं को दरशाती है।

        एक जैसे ढंग से बोलना दर्शकों पर प्राणनाशक प्रभाव डालने का काम करती है। यह चेहरे की रौनक छीन लेती है, आँखों की चमक कमजोर कर देती है। बहुत ज्यादा एक ही ढंग से बोलना काल कोठरी की सजा के समान है। अगर एक मेज पर एक कंचा रखें और लगातार अठारह घंटों तक उस कंचे को एक जगह से दूसरी जगह पर धकेलते रहें। दावे के साथ आपकी हालत पागलों जैसी हो जाएगी। इसी तरह एक ही ढंग से बोलने वाले वक्ता श्रोताओ को पागल कर देते है।

3.स्वर बदलने की कुशलता

        स्वर में बदलाव करने की कला लगभग सभी नौसिखियों के लिए अड़चन का काम करती है, यहाँ तक कि बहुत से निपुण वक्ताओं के लिए भी। यह तब ज्यादा भयंकर हो जाती है, जब भाषण को याद किया जाए। स्वर में अंतर दर्शकों में रुचि पैदा करती है। लेकिन दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने का सबसे आसान तरीका है- सही जगह पर बल का प्रयोग। महत्त्व देने योग्य शब्द या वाक्य पर सही एवं सटीक बल देना बेहद जरूरी होता है। For example





        भाषण के दौरान अचानक स्वर में बदलाव और वाक्य विशेष पर दिए गए जोर के जरिए वक्ता सवाल की गंभीरता को दरशाता है।

4.गति में बदलाव की कुशलता

        गति में किया गया बदलाव प्रभावशाली होता है और दर्शकों को आकर्षित करता है। यदि कोई रेलगाड़ी 110 km per hour की रफ्तार से दौड़ रही है तो मुमकिन है कि आप उस रफ्तार पर ध्यान न दें, लेकिन यदि अचानक रेलगाड़ी 20 km per hour की रफ्तार पर चलने लगे तो आपका ध्यान जरूर आकर्षित होगा। संभव है कि रेस्तराँ में खाना खाते वक्त आपका ध्यान धीमे बज रहे संगीत पर न जाए, लेकिन यदि संगीत की आवाज अचानक तेज कर दी जाए तो आपका ध्यान स्वाभाविक रूप से उस ओर जाएगा।

        यह सिद्धांत भाषा की कला में भी समान रूप से लागू होता है। यदि आप कोई महत्त्वपूर्ण तथ्य दर्शकों के सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं तो तथ्य को कुशलता से पेश कीजिए, निस्संदेह ऐसा करने पर दर्शकों का ध्यान आपकी ओर आकर्षित होगा।

5.विराम एवं ऊर्जा

        एक प्रभावशाली वक्ता के लिए महत्त्वपूर्ण वाक्य या मुहावरे की शुरुआत या अंत में विराम लेना आवश्यक होता है। किसी विचार को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए हलका सा विराम लें, दिमाग की शक्तियों को संयोजित करें, फिर नए जोश के साथ अपने विचार को प्रस्तुत करें। कार्यालय ने सही कहा है, 'मैं मन से विनती करता हूँ। जब तक विचार पूर्णतया विकसित न हों, तब तक न बोलें। शांत रहने से शक्ति का सृजन होता है। बोलना चाँदी के समान है, लेकिन चुप रहना सोने की भाँति है। बोलना मानवीय है, चुप्पी ईश्वरीय है।'

        For example : दिन-रात, वसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और शीत ऋतु - इन सभी मौसमों के बीच में एक ठहराव होता है। इसके अलावा दिल की धड़कनों के बीच भी ठहराव होता है इसलिए विराम का उपयोग कीजिए और दर्शकों को गंभीरता से विचार के महत्त्व को समझने का मौका दीजिए। दर्शक चुप्पी के बाद कही गई बात बेहद गंभीरता से समझने की कोशिश करते हैं।

        सावधानी के तौर पर एक हिदायत बेहद जरूरी है - विराम और ठहराव के सिद्धांतों का बहुत ज्यादा अभ्यास न करें। विराम के ज्यादा अभ्यास से भाषा-शैली बोझिल और विचित्र हो सकती है। इस बात का भी खास खयाल रखना जरूरी है कि विराम किसी आम विचार को महत्त्वपूर्ण साबित करने का काम नहीं कर सकता।

6.भाषण-शैली में एकाग्रता

        हर व्यक्ति में वातावरण की बाकी घटनाओं से ध्यान हटाकर खुद को एकाग्र करने की शक्ति होती है। शरीर के किसी हिस्से में होनेवाली पीड़ा पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने से पीड़ा और बढ़ जाती है। टेनिस के खेल में प्रहार पर ध्यान दीजिए, प्रदर्शन में खुद-ब-खुद निखार आ जाएगा। एकाग्रता का अर्थ है-किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित करना और बाकी चीजों से ध्यान हटाना। यदि आप ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो कुछ गड़बड़ है। इस कमी पर सबसे पहले ध्यान दें। कमी को सुधारने की भरपूर कोशिश करें, निश्चित रूप से समाधान निकल आएगा। इच्छा और अभ्यास के द्वारा इच्छा-शक्ति को विकसित करें। हर कीमत पर ध्यान लगाएँ, निश्चित रूप से सफलता हासिल होगी।

7.भावना एवं जोश

        इसे इस example से समझते है - घड़ी बनानेवाली एक कंपनी ने घड़ी की दो किस्मों को दो अलग-अलग विज्ञापनों के जरिए बेचने का रास्ता आजमाया–पहले विज्ञापन में घड़ी बनाने की बेजोड़ विधि, कारीगरी और घड़ी के लंबे समय तक टिकाऊ रहने का भरोसा प्रदर्शित किया गया; दूसरे विज्ञापन में 'गर्व करने लायक घड़ी' जैसी पंचलाइन के जरिए घड़ी खरीदने से संबंधित गौरव का व्याख्यान किया गया। विज्ञापन का दूसरा तरीका बेहद पसंद किया गया और पहले के मुकाबले दूसरे मॉडल की घड़ियों की बिक्री दोगुनी रही।

        इनसान एक भावनात्मक प्राणी है। एक प्रभावशाली वक्ता बनने के लिए दर्शकों में विषय के अनुसार भावना पैदा करना बहुत जरूरी होता है। वाद-विवाद की कला में निपुण वक्ता अच्छी तरह से जानते थे कि भाषण का भावनात्मक पहलू सबसे अहम होता है।

        उत्साह कोई कमीज नहीं है, जिसे जब चाहे, पहन लो और जब चाहे, उतार दो। उत्साह को book में मौजूद नसीहतों से भी हासिल नहीं किया जा सकता। उत्साह समय के साथ विकसित होनेवाला प्रभाव होता है। लेकिन सवाल है कि किस चीज का प्रभाव? इसे जानने की कोशिश करते हैं।

        भाषा में अहसास पैदा करने का बस यही एकमात्र रास्ता है, कि बोलते समय विषय को दिल से महसूस करें और बाकी सब भूल जाएँ। आप जिस अहसास का वर्णन करना चाहते हैं, उसके किरदार में पूर्ण रूप से उतर जाएँ। आप जिस उद्देश्य की वकालत कर रहे हों, जिस मामले पर बहस कर रहे हों, उसे कपड़ो की तरह धारण कर लें, उसमें समा जाएँ और इस दौरान बाकी सब भूल जाएँ। इस तरह भाव के सही मतलब तक पहुँचा जा सकता है, विषय में सहानुभूति का भाव पैदा किया जा सकता है, प्रकट की जानेवाली भावना निजी भावना जैसी प्रतीत की जा सकती है। ऐसा करने से विषय का अहसास समाहित हो जाता है और उत्साह वास्तविक एवं संक्रामक रूप धारण कर लेता है।

8.तैयारी के जरिए बहाव

        मोटे तौर पर कहें तो मजबूत तैयारी भाषण में बहाव पैदा करने का एकमात्र तरीका है। निश्चित तौर पर कलाकार में मौजूद पैदाइशी गुण बहुत महत्त्व रखते हैं, लेकिन जन्म से प्राप्त गुणों को निखारने के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है। अभ्यास के द्वारा उन गुणों को भी हासिल किया जा सकता है, जो व्यक्तित्व में प्राकृतिक रूप से मौजूद नहीं होते।

        जानकारी को एक साथ कर उसे निश्चित रूप देने को संपूर्ण तैयारी नहीं मानना चाहिए। अभ्यास के बिना तैयारी संपूर्ण नहीं हो सकती, यानि जानकारी के अनुसार भाषण का अभ्यास करना बेहद आवश्यक होता है। इस सिद्धांत के आधार पर की गई तैयारी और अभ्यास का असर निश्चित समय के बाद ही महसूस होता है। लिहाजा शुरुआती विफलता से न तो घबराएँ और न ही निराशा को हावी होने दें। शुरुआत में इस पद्धति को अपनाने से होनेवाले प्रभाव को नजरअंदाज करें और भविष्य में सकारात्मक परिणाम की कल्पना करें। मंच पर पहुँचने के बाद केवल विषय के बारे में सोचें। दर्शकों और वक्ता के बीच एक-दूसरे के भाव समझने की असीम शक्ति होती है। वक्ता द्वारा संकेतों के माध्यम से प्रस्तुत किए गए विचारों को दर्शक आसानी से समझ लेते हैं।

        लेकिन इसके लिए कड़ी मेहनत की जरूरत होती है। मेहनत से कौन सी चीज हासिल नहीं की सकती! कड़ी मेहनत लक्ष्य हासिल करने का एकमात्र रास्ता है। कड़ी मेहनत से हासिल की गई सफलता सबसे ज्यादा संतोषजनक होती है। यादगार भाषण के लिए सोचे गए विचार और कड़े अभ्यास का फल अति स्वादिष्ट होता है।

9.स्वर का जादू

        स्वर की आनंददायक लय में माहौल को मदहोश करने का जादू होता है। सड़कों पर मौज-मस्ती करते बच्चों की आवाज का आकर्षण मन को प्रसन्न कर देता है, लेकिन अस्पताल में सहमी हुई आवाजें हताशा पैदा करती हैं। एक निपुण चिकित्सक मरीज की आवाज से बीमारी की गंभीरता को भाँप लेता है। स्वास्थ्य का गिरना और स्वास्थ्य से संबंधित चिंता स्वर में उदासी भर देती है। जिस प्रकार बीमार शरीर को स्वस्थ करने के लिए आराम की जरूरत होती है, उसी प्रकार भाषण से पहले निराशा को दूर करने के लिए एकांत की जरूरत होती है।

        पहनावे से अकसर इनसान के व्यक्तित्व का पता लग जाता है।' आवाज भी व्यक्ति विशेष से संबंधित कई राज खोलती है। तुच्छ महिला, निर्दयी पुरुष, पथभ्रष्ट इनसान, व्यावहारिक व्यक्ति- सभी स्वर और लहजे के जरिए असल व्यक्तित्व को दरशा देते हैं। चालाक-से-चालाक व्यक्ति अपने भाव छुपाने के लिए कितना भी छल क्यों न कर ले, असल इरादे को पूरी तरह नहीं छुपा पाता। क्रोध और अप्रिय स्थिति में आवाज तेज हो जाती है; प्रेम के भाव के साथ मधुर और धीमी आवाज के बदलाव के विभिन्न रूपों को शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं है। किसी प्रसिद्ध रंगमंच के प्रचलित नाटक को देखने जाइए और कलाकारों के स्वर भाव बदलने के अंदाज का ध्यान से अध्ययन कीजिए। निस्संदेह स्वर और भाव में विभिन्न भाव पैदा करनेवाला कलाकार सबसे ज्यादा पसंद आएगा। एमरसन ने कहा है, 'यदि इनसान को भगवान् के साथ रहने का मौका मिल जाए तो निश्चित तौर पर इनसान का स्वर बेहद शालीन एवं मधुर हो जाएगा।' स्वार्थी व्यक्ति के स्वभाव में आकर्षण, सहजता और मधुर आवाज बहुत दुर्लभ होती है। स्वर में दयालुता विकसित करने के लिए समाज के प्रति संवेदना होनी बहुत जरूरी होती है। स्वर से सौम्यता और व्यक्तित्व में सहजता प्रेम से विकसित होती है। कैनेरी चिड़िया की चहचहाहट में मिठास का सबसे बड़ा कारण स्वतंत्र विचार हो सकते हैं। स्वतंत्र और निस्स्वार्थ विचारों से व्यक्तित्व में निखार आता है। व्यक्ति के स्वच्छ विचार वाणी को सहज एवं आकर्षक बनाते हैं।

10.संकेतों से जुड़े सत्य

        किसी विषय से संबंधित निश्चित नियम तैयार नहीं किए जा सकते; बल्कि ऐसी कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। भाषण का माहौल और वक्ता का स्वभाव दर्शकों के मिजाज के मुताबिक होना चाहिए। भाषण के दौरान वक्ता किस विचार पर कैसा भाव प्रस्तुत करेगा, इसका ठीक-ठीक अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। भाषण के बीच में वक्ता कई बार दोनों हथेलियों की पहली उँगलियों को छोड़कर बाकी उँगलियों की मुट्ठी बना लेता है और पहली उँगलियों को मिलाकर दर्शकों की तरफ ऐसे संकेत करता है जैसे विचारों की बौछार कर रहा हो। बहुत से वक्ता हथेली पर मुट्ठी की ताल देते हुए विचार पर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। वहीं ब्रायन अहम विचारों को प्रस्तुत करने के दौरान ताली मारने के बाद सीधे हाथ को ऊपर उठाने का आदी है; ग्लैडस्टोन विचारों को बल देने के लिए सामने रखी मेज पर जोर से मुक्का मारता है।

        इस प्रकार, वक्ता के अंदाज के बारे में कुछ अटकलें जरूर लगाई जा सकती हैं; लेकिन यह तय नहीं किया जा सकता कि भविष्य में वक्ता किस अंदाज को विकसित कर ले। इस विषय को ज्यादा स्पष्टता के साथ समझने के लिए इन steps पर ध्यान देना आवश्यक है।
  1. दर्शकों का ध्यान आकर्षित न कर पानेवाला अंदाज व्यर्थ होता है
  2. भाव विषय के मुताबिक होना चाहिए
  3. भाव एक जैसा नहीं होना चाहिए
  4. भाषण के बीच की महत्त्वहीन कड़ी कमजोरी को जन्म देती है इससे बचे
  5. इशारों का इस्तेमाल या तो भाव के साथ होना चाहिए या भाव से पहले, भाव के बाद नहीं
  6. छोटे और झटकेदार इशारों से बचिए
  7. चेहरे के भावों का महत्त्व होता है इसलिए इसे इस्तेमाल करे
  8. जरूरत से ज्यादा इशारों का इस्तेमाल न करें
  9. शारीरिक मुद्रा का इस्तेमाल करते रहे
        👆 यह Summary है "अच्छा बोलने की कला और कामयाबी | Public Speaking for Success" by Dale Carnegie Book की, यदि Detail में पढ़ना चाहते है तो इस Book को यहां से खरीद सकते है 👇

Post a Comment

Previous Post Next Post