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जीत आपकी | You Can Win By Shiv Khera - नज़रिया बदलने के आठ कदम | 8 Steps To Attitude Change

जीत आपकी | You Can Win By Shiv Khera - नज़रिया बदलने के आठ कदम | 8 Steps To Attitude Change

जीत आपकी | You Can Win By Shiv Khera - नज़रिया बदलने के आठ कदम | 8 Steps To Attitude Change
नज़रिया बदलने के आठ कदम | 8 Steps To Attitude Change  

Hello Friends,आपका स्वागत है learningforlife.cc में। नकारात्मक नज़रिए वाले लोग अपनी असफलता के लिए अकसर माँ-बाप, शिक्षक, जीवनसाथी, बॉस, सितारों, तकदीर, आर्थिक स्थितियों और सरकार, यानी खुद को छोड़ कर बाकी सभी लोगों को दोषी ठहराते रहते हैं।  सच्चाई,ईमानदारी और अच्चाई से जुड़ी चीजों के बारे में सोचने से हमारी सोच सकारात्मक हो जाएगी। अगर हम सकारत्मक नजरिया बनाना और कायम रखना चाहते है,तो ध्यान से इस पोस्ट में दिए गए कदमो को follow करे :-


पहला कदम - अपनी सोच बदलें और अच्छाई खोज़े 

(Step 1 - Change Focus, Look for the Positive)


एंड्र्यू कार्नेगी (Andrew Carnegie) अपने बचपन के दिनों में ही स्कॉटलैंड (Scotland) से अमेरिका (America) चले गए। उन्होंने छोटे-मोटे कामों से शुरुआत की, और आखिरकार अमेरिका में स्टील बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी के मालिक बन गए। एक ऐसा वक़्त आया जब उनके लिए 43 करोड़पति काम करते थे। करोड़ रुपये इस
ज़माने में भी बहुत होते हैं लेकिन सन् 1920 के आसपास तो उनकी बहुत ज्यादा कीमत थी।

किसी ने कार्नेगी से पूछा, "आप लोगों से कैसे पेश आते हैं?" उन्होंने जवाब दिया - "लोगों से पेश आना काफ़ी हद तक सोने की खुदाई करने जैसा ही है। हमको एक तोला (Ounce) सोना खोद निकालने के लिए कई टन मिट्टी हटानी पड़ती है। लेकिन खुदाई करते वक़्त हमारा ध्यान मिट्टी पर नहीं, बल्कि सोने पर रहता है।"

हमारा मकसद क्या है? सोना तलाशी। अगर हम किसी इंसान, या किसी चीज़ में कमियाँ ढूंढेंगे, तो हमको ढेरों कमियाँ दिखाई देंगी। लेकिन हमें किस चीज़ की तलाश है - सोने की, या मिट्टी की? कमियाँ ढूँढ़ने वाले तो स्वर्ग में भी कमियाँ निकाल देंगे। अधिकतर लोगों को वही मिलता है, जिसकी उन्हें तलाश होती है।

दूसरा कदम - हर काम फ़ौरन करने की आदत डालें

(Step 2 - Make a Habit of Doing it Now)


वह चांदनी रातों में सोया
उसने सुनहरी धूप का मज़ा उठाया
कुछ करने की तैयारी में ज़िंदगी गुज़ारकर
वह गुज़र गया कुछ न कर - हारकर।
                                                           -जेम्स अलबरी

हम भी जिंदगी में कभी न कभी टालमटोल (procrastinate) करते हैं। मैंने भी ऐसा किया है, जिसके लिए मुझे बाद में पछताना पड़ा। टालमटोल की आदत की वजह से हमारा नज़रिया नकारात्मक बन जाता है। किसी काम को करने से अधिक थकान उस काम को न करने के लिए की जाने वाली टालमटोल की वजह से होती है।

कोई भी काम पूरा होने पर खुशहाली आती है और हौसला बुलन्द होता है, जबकि आधा-अधूरा काम हमारी हिम्मत को वैसे ही खत्म कर देता है, जैसे पानी के टैंक में कोई छेद टैंक को खाली कर देता है।

अगर हम सकारात्मक नजरिया बनाना और कायम रखना चाहते हैं, तो आज में जीने और हर काम को तुरंत करने की आदत डालें।

तीसरा कदम - अहसान मानने का नज़रिया बनाएँ

(Step 3 - Develop an Attitude of Gratitude)


अपनी दिक्क़तों के बारे में सोचने के बजाए अपनी सहूलियतों के बारे में सोचें। अपने इर्दगिर्द के फूलों की खुशबू सूंघने के लिए वक़्त निकालें। आप कई बार सुनते होंगे कि कोई आदमी दुर्घटना की वजह से अंधा, या अपाहिज हो गया, लेकिन उसे हरज़ाने के तौर पर लाखों रुपये मिल गए।

हममें से कितने लोग ऐसे आदमी की जगह लेना चाहेंगे? ऐसा चाहने वाला शायद ही कोई होगा। हम शिकायतें करने के इतने आदी हो गए हैं कि उन चीज़ों की ओर हमारी नज़र ही नहीं जाती, जो हमारे पास मौजूद हैं। हमारे पास ऐसी बहुत सारी चीज़े हैं, जिनके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

चौथा कदम – लगातार ज्ञान हासिल करने का कार्यक्रम बनाइए

(Step 4 - Get into a Continuous Education Program)


हमें स्कूल-कॉलेजों में ढेर सारी सूचनाएँ हासिल होती हैं। शिक्षित होने के लिए सूचनाएँ भी ज़रूरी हैं, लेकिन उसके साथ ही हमें शिक्षा का सही मायने भी समझना चाहिए।

बौद्धिक शिक्षा (intellectual education) हमारे दिमाग पर असर डालती है, जबकि नैतिक शिक्षा (values based education) हमारे मन को प्रभावित करती है। यदि शिक्षा मन को ट्रेनिंग नहीं देती, तो वह खतरनाक हो सकती है। अगर हम अपने दफ्तर, घर, और समाज में लोगों के चरित्र का निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें उन्हें एक स्तर तक नैतिक शिक्षा देनी ही होगी। ईमानदारी, दया, साहस, – दृढ़ता और ज़िम्मेदारी जैसे बुनियादी गुण विकसित करने वाली शिक्षा बेहद ज़रूरी है।

हमें ज़्यादा अक्षर-शिक्षा की ज़रूरत नहीं, बल्कि चरित्र बनाने वाली शिक्षा की है। नैतिक स्तर पर शिक्षित आदमी ज़िंदगी में उस आदमी की तुलना में ज़्यादा क़ामयाबी आरै तरक्क़ी हासिल कर सकता है, जिसे ज़्यादा अच्छी शिक्षा मिली हो, पर जिसके पास नैतिकता की पूँजी बिल्कुल न हो।

पाँचवाँ कदम - अच्छे स्वाभिमान का निर्माण कीजिए

(Step 5 - Build Positive Self-esteem)


अगर हम अच्छा स्वाभिमान जल्दी बनाना चाहते हैं, तो इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम कुछ काम ऐसे लोगों की मदद के लिए करें, जो उसका बदला न तो पैसे से, न ही कुछ और देकर चुका सकते हैं। दुनिया में दो तरह के लोग हैं - देने वाले, और लेने वाले। लेने वाले अच्छा खाते हैं, और देने वाले अच्छी तरह सोते हैं। देने वालों में ऊँचे दर्जे के आत्म-सम्मान की भावना होती है। उनका नज़रिया सकारात्मक होता है। ऐसे लोग समाज की सेवा करते हैं।(Detail में जाने)

छठा कदम - नकारात्मक असर से बचे

(Step 6 - Stay Away from Negative Influences)


एक चील का अंडा किसी तरह एक जंगली मुर्गी के घोंसले में चला गया और बाकि अंडों के साथ मिल गया। समय आने पर अंडा फूटा। चील का बच्चा अंडे से निकलने के बाद यह सोचता हुआ बड़ा हुआ कि वह मुर्गी है। वह उन्हीं कामों को करता, जिन्हें मुर्गी करती थी। वह ज़मीन खोद कर अनाज के दाने चुगता, और मुर्गी की तरह ही कुड़कुड़ाता। वह कुछ फीट से अधिक उड़ान नहीं भरता था, क्योंकि मुर्गी भी ऐसा ही करती थी। एक दिन उसने आकाश में एक चील को बड़ी शान से उड़ते हुए देखा। उसने मुर्गी से पूछा, "उस सुंदर चिड़िया का नाम क्या है?" मुर्गी ने जवाब दिया, "वह चील है। वह एक शानदार चिड़िया है, लेकिन तुम उसकी तरह उड़ान नहीं भर सकते, क्योंकि तुम तो मुर्गी हो।" चील के बच्चे ने बिना सोचे-विचारे मुर्गी की बात को मान लिया। वह मुर्गी की जिंदगी जीता हुआ ही मर गया। सोचने की क्षमता न होने के कारण वह अपनी विरासत को खो बैठा। उसका कितना बुड़ा नुक़सान हुआ। वह जीतने के लिए पैदा हुआ था, पर वह दिमागी रूप से हार के लिए तैयार हुआ था।
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अगर हम चील की तरह आकाश की बुलंदियों को छूना चाहते हैं, तो हमको चील के तौर-तरीकों को सीखना होगा। अगर हम ख़ुद को क़ामयाब लोगों के साथ जोड़ेंगे, तो हम भी क़ामयाब हो जाएँगे। अगर हम चिंतकों के
साथ जुड़ेंगे, तो चिंतक बन जाएँगे। यदि हम देने वालों के साथ रहेंगे, तो देने वाले बन जाएँगे और अगर हम नकारात्मक सोच वाले लोगों के साथ रहेंगे, तो वैसे ही बन जाएंगे।

सातवाँ क़दम - ज़रूरी कामों को पसंद करने की आदत डालें

(Step 7 - Learn to Like the Things That Need to be Done)


जो ज़रूरी है उससे शुरू करें, फिर जो मुमकिन है वह करें, और आप अचानक
पाएँगे कि आप नामुमकिन काम भी करने लगे हैं।
 - सेंट फ्रांसिस ऑफ असिसी

कुछ काम ऐसे होते हैं, जिन्हें हम पसंद करें, या नापसंद पर वे हमें करने ही पड़ते हैं। जैसे कि एक माँ अपने बच्चे की देखभाल हर हाल में करती है। कोई ज़रूरी नहीं है कि इसमें उसे हमेशा सुख मिलता हो, बल्कि कई बार तो यह तकलीफ़ देह हो सकता है। लेकिन हम ऐसे ज़रूरी कामों को पसंद करना सीख लें, तो फिर नामुमकिन भी मुमकिन बन जाता है।

आठवाँ क़दम - अपने दिन की शुरुआत किसी अच्छे (सकारात्मक) काम से करें

(Step 8 - Start Your Day with Something Positive)


सुबह के वक्त सबसे पहले कोई अच्छी चीज़ पढ़ें या सुनें। रात में अच्छी तरह सोने के बाद हमारा तनाव दूर हो चुका होता है, और हमारा अवचेतन मन किसी बात को बड़ी आसानी से क़बुल कर लेता है। इससे दिनभर के लिए एक लय बन जाती है, और हमारी दिमागी सोच का ताना-बाना सही रूप ले लेता है, जिससे हमारा पुरा दिन अच्छा बन जाता है। ख़ुद में बदलाव लाने के लिए हमें सोचे-समझे ढंग से कोशिश करनी होगी, और पूरे संकल्प
के साथ अच्छे विचार और व्यवहार को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना होगा। सकारात्मक विचार और व्यवहार को अपनाने का अभ्यास रोज़ करें, और इसे तब तक जारी रखें, जब तक यह आदत न बन जाए।

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यह Summary है "जीत आपकी (You Can Win)" By Shiv Khera Book के एक Chapter की। यदि आप Detail में पड़ना चाहते है तो इस Book को यहाँ से खरीद सकते है :-



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