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धन को आकर्षित कैसे करें | How to Attract Money by Joseph Murphy Book Summary in Hindi

Dhan Ko Aakarshit Kaise Karen | How to Attract Money by Joseph Murphy Book Summary in Hindi

Dhan Ko Aakarshit Kaise Karen | How to Attract Money by Joseph Murphy Book Summary in Hindi
धन को आकर्षित कैसे करें | How to Attract Money by Joseph Murphy Book Summary in Hindi

        💕Hello Friends,आपका स्वागत है www.learningforlife.cc में। दोस्तों यहाँ आप समृद्ध जीवन बिताने आए हैं। आप यहाँ ख़ुश रहने, बड़ा बनने और स्वतंत्र होने के लिए आए हैं। इसलिए एक पूरा, सुखद और समृद्ध जीवन जीने के लिए आपको जितना पैसा चाहिए, वह आपके पास होना चाहिए। ग़रीबी में कोई सद्गुण नहीं है। यह एक मानसिक रोग है, जिसका इस पृथ्वी से नाश कर देना चाहिए। आप यहाँ विकास करने आए हैं, विस्तार करने आए हैं और ख़ुद को प्रकट करने आए हैं - आध्यात्मिक दृष्टि से, मानसिक दृष्टि से और भौतिक दृष्टि से। आपको ख़ुद को सौंदर्य और Luxury से घेर लेना चाहिए। जब आप असीम दौलत का आनंद ले सकते हैं, तो फिर सीमित पैसों से क्यों संतुष्ट रहें? इस पोस्ट में "धन को आकर्षित कैसे करें" by Joseph Murphy Book से हम सीखेंगे कि पैसे के साथ दोस्ती कैसे करे और हमारे पास हमेशा समृद्धि (prosperity) कैसे रहे।

अमीर बनना आपका अधिकार है

        ज़्यादातर लोगों को बहुत कम salary मिलती है। कई लोगों के पास ज़्यादा पैसा नहीं है, इसका एक कारण यह है कि वे मन ही मन या खुलकर इसकी निंदा कर रहे हैं। वे पैसे को ”गंदा पैसा“ कहते हैं या यह मानते हैं कि ”पैसे का प्रेम ही सारी बुराई की जड़ है,“। वे संपन्न नहीं होते हैं, इसका एक कारण यह है कि उनके मन में यह गोपनीय, अवचेतन भावना रहती है कि ग़रीबी में कोई सद्गुण है। यह अवचेतन भाव बचपन के training, अंधविश्वास या धर्मग्रंथों की ग़लत व्याख्या पर आधारित हो सकता है। ग़रीबी में कोई भी सद्गुण नहीं है। यह किसी भी अन्य मानसिक रोग की तरह एक बीमारी है। अगर आप शारीरिक रूप से बीमार होते हैं, तो आपको लगता है कि आपके साथ कुछ न कुछ गड़बड़ है। ऐसे में आप मदद लेना चाहेंगे और अपनी बीमारी का इलाज करने की कोशिश करेंगे। इसी तरह, अगर आपके जीवन में पर्याप्त धन लगातार प्रवाहित नहीं हो रहा है, तो आपके साथ कोई न कोई बुनियादी गड़बड़ है।

        धन संबंधी सभी अंधविश्वासी मान्यताओं से तुरंत मुक्ति पा लें। कभी भी पैसे को बुरा या गंदा न मानें। अगर आप ऐसा करते हैं, तो पैसे के पंख लग जाएँगे और यह उड़कर आपसे दूर चला जाएगा। याद रखें, आप जिसकी निंदा करते हैं, उसे खो देते हैं। For Example: कुछ लोग कहेंगे,"ओह, लोग पैसे के लिए लोगों की जान ले लेते हैं। वे पैसे के लिए चोरी करते हैं!" यह सच है कि पैसा बहुत ज्यादा अपराधों से संबध रखता है, लेकिन इससे यह बुरा नहीं बन जाता। कोई आदमी किसी की जान लेने के लिए किसी दूसरे को 50 डॉलर देता है। उसने एक विनाशकारी उद्देश्य से पैसे का दुरुपयोग किया है। इसी तरह आप बिजली का इस्तेमाल किसी की जान लेने के लिए कर सकते हैं या इससे घर को रोसन कर सकते हैं। आप पानी का इस्तेमाल किसी बच्चे की प्यास बुझाने के लिए कर सकते हैं या इसमें उसे डुबा भी सकते हैं। आप आग का इस्तेमाल किसी बच्चे को गरमी देने या उसे जलाकर मार डालने के लिए कर सकते हैं। इसी तरह यह आप पर है कि पैसे के बारे में आप क्या सोचते है।

        एक और उदाहरण यह है कि आप अपने बगीचे से मिट्टी लाकर अपने कॉफी के कप में डाल देते हैं। आपने ग़लत किया है, बुराई आपकी है; मिट्टी बुरी नहीं है, न ही कॉफी है। मिट्टी को गल़त जगह पर डाला गया है इसकी असली जगह आपका बगीचा है।

        ईश्वर नहीं चाहता कि आप किसी झोपडी में रहें या भूखे रहें। ईश्वर चाहता है कि आप ख़ुश, समृद्ध और सफल हों। ईश्वर अपने सभी कामों में हमेशा सफल रहता है, चाहे वह तारा बनाना हो या क़ायनात!

        पैसे का प्रेम अगर बाक़ी सारी चीज़ों से प्रबल होगा, तो आप एकतरफ़ा और असंतुलित हो जाएँगे। आप संसार में अपनी शक्ति या सत्ता का समझदारी से इस्तेमाल करने आए हैं। कुछ लोग शक्ति की चाह रखते हैं; बाक़ी पैसे की। अगर आपका दिल पैसे पर लट्टू हो जाता है और आप कहते हैं, "बस में तो इसी को चाहता हूँ। में अपना सारा ध्यान पैसे को इकठा करने पर केंद्रित करने जा रहा हूँ; दूसरी कोई चीज़ मायने नहीं रखती," तो आप पैसा कमा सकते हैं और दौलत इकट्ठी कर सकते हैं, लेकिन आप भूल रहे हैं कि आप यहाँ पर एक संतुलित जीवन जीने के लिए आए हैं। ”इंसान सिर्फ़ रोटी से ही नहीं जीता है।“

        एक आदमी यह कहकर अपने अवचेतन मन का सहयोग हासिल कर सकता है, "में हर दिन समृद्ध हो रहा हूँ।" "हर दिन मेरी दौलत और बुद्धिमानी बढ़ रही है।" "हर दिन मेरी दौलत बढ़ रही है।" "में आर्थिक दृष्टि से तरक्की कर रहा हूँ, विकास कर रहा हूँ और आगे बढ़ रहा हूँ।" इन कथनों से मन में कोई संघर्ष उत्पन्न नहीं होगा और आप धन को आकर्षित करेंगे।

        मिसाल के तौर पर, अगर किसी सेल्समैन की जेब में सिर्फ़ दस सेंट हैं, तो वह आसानी से यह स्वीकार कर सकता है कि कल उसके पास ज़्यादा पैसे हो सकते हैं। अगर उसने कल एक जोड़ी जूते बेचे थे, तो उसके भीतर ऐसा कुछ नहीं है जो कहे कि उसकी बिक्री नहीं बढ़ सकती। वह इस प्रकार के कथनों का इस्तेमाल कर सकता है, ”मेरी बिक्री हर दिन बढ़ रही है।“ ”में तरक्की कर रहा हूँ और आगे बढ़ रहा हूँ।“ वह पाएगा कि ये मनोवैज्ञानिक रूप से ठोस हैं। उसका मन इन कथनों को सच मान लेगा और उसे मनचाहा फल देगा।

लक्ष्य का होना भी जरुरी है

        अमीर बनने की राह में लक्ष्य का होना भी जरुरी है। बिना लक्ष्य के हम कुछ भी नहीं पा सकते क्योकि जब हमें पता ही नहीं कहा जाना है तो आप कही भी नहीं पहुचेगे। लक्ष्य को स्वीकार करने से लक्ष्य की प्राप्ति के साधन अपने आप आ जाते हैं। यक़ीन करें कि मनचाही चीज़ इसी समय आपके पास है और आप इसे पा लेंगे। लक्ष्य के बारे में detail में समझने के लिए इस पोस्ट को पढ़े या YouTube पर देखे।  

दुसरो के प्रति कटु और ईष्र्यालु न हो

        आपने लोगों को यह कहते सुना होगा, "इस आदमी का गोरखधंधा है।" "वह एक ठग है।" "वह बेईमानी से पैसे कमा रहा है।" "वह धोखेबाज़ है।" "में उसे तब जानता था, जब उसके पास कुछ नहीं था।" "वह कुटिल है, चोर है और दग़ाबाज़ है।" अगर आप यह बोलने वाले आदमी का विश्लेषण करते हैं, तो आप पाते हैं कि वह आम तौर पर अभाव में है या किसी आर्थिक अथवा शारीरिक बीमारी का शिकार है। शायद कॉलेज के उसके पुराने मित्र सफलता की सीढ़ी पर ऊपर पहुँच गए और उससे ज़्यादा अच्छी स्थिति में पहुँच गए; उनकी प्रगति देखकर वह कटु और ईष्र्यालु हो गया है। कई मामलों में यही उसके पतन का कारण होता है।

        इन सहपाठियों के बारे में नकारात्मक तरीक़े से सोचने और उनकी दौलत की निंदा करने का नतीजा यह होता है कि जिस दौलत और समृद्धि के लिए वह प्रार्थना कर रहा है, वह ग़ायब हो जाती है और दूर चली जाती है। वह जिन चीज़ों के लिए प्रार्थना कर रहा है, दरअसल उन्हीं की निंदा कर रहा है। वह दोतरफ़ा प्रार्थना कर रहा है। एक तरफ़ तो वह कह रहा है, "ईश्वर मुझे समृद्ध बना रहा है", और अगली ही साँस में मन ही मन या ज़ोर से वह कह रहा है, "में उस आदमी की दौलत से द्वेष करता हूँ।" हमेशा दूसरे व्यक्ति को दुआ दें, हमेशा उसकी समृद्धि और सफलता पर ख़ुश हों; ऐसा करके आप ख़ुद को दुआ देते हैं और समृद्ध बनाते हैं।

अमीरी की राह

        जैसा कि पोस्ट के शुरुआत में बताया गया है कि गरीबी एक मानसिक रोग है और इसे ठीक किया जा सकता है। अमीरी दिमाग़ से जुड़ी होती है। आइए एक पल के लिए मान लेते हैं कि किसी डॉक्टर का डिप्लोमा चोरी हो जाता है। उसके ऑफिस की सारी मशीनें भी चोरी हो जाती हैं। आप इस बात से सहमत होंगे कि उसकी दौलत उसके दिमाग़ में है। वह अब भी अपना काम कर सकता है, रोगों को दूर कर सकता हैं दवाएँ लिख सकता है, ऑपरेशन कर सकता हैं और medical related lecture दे सकता है। सिर्फ़ उसके प्रतीक चोरी हुए थे; मशीनें तो वह हमेशा ले सकता है। उसकी अमीरी उसकी मानसिक क्षमता, दूसरों की मदद करने वाले उसके ज्ञान और मानवता को योगदान देने की उसकी क़ाबिलियत में थी।

        जब आपके मन में मानवता के हित में योगदान देने की प्रबल इच्छा होती है, तो आप हमेशा दौलतमंद होंगे। सेवा - यानि संसार को अपने गुणों से लाभ पहुँचाना - आपकी आकांक्षा पर सृष्टि हमेशा प्रतिक्रिया करेगी।

        1929 के आर्थिक संकट के दौरान न्यू यॉर्क के एक व्यक्ति ने हर चीज़ गँवा दी, जिसमें उसका मकान और जीवन भर की बचत शामिल थी। लेकिन इस हाल में होते हुए भी उसने कहा: "मैंने हर चीज़ गँवा दी है। मैंने चार साल में एक मिलियन डॉलर कमाए थे। मैं इतनी राशि दोबारा कमा लूँगा। मैंने जो गँवाया है, वह एक प्रतीक है। मैं दौलत के प्रतीक को उसी तरह दोबारा आकर्षित कर सकता हूँ, जिस तरह शहद मक्खियों को आकर्षित करती है।"

        Author ने कई साल तक उस आदमी के करियर पर नज़र रखी, ताकि उसकी सफलता की कुंजी का पता लगा सके। और वह कुंजी यह थी, ”पानी को सुरा में बदलो!“ यानि बाइबल में सुरा का हमेशा मतलब हैं आपकी इच्छाओं, आकांक्षाओं, योजनाओं, सपनों, आग्रहों आदि का साकार होना। दूसरे शब्दों में, ये वे चीज़ें हैं, जिन्हें आप हासिल करना और साकार करना चाहते हैं। उसने बाइबल का यह हिस्सा पढ़ा और वह जान गया कि यह आदर्श स्वास्थ्य, ख़ुशी, मानसिक शांति और दौलत का जवाब था।

निराशाजनक विचारो से बचे

        जब आप किसी चीज़ को हासिल करना चाहते हैं, जैसे नौकरी खोजना, पैसे पाना और अपनी समस्या से बाहर निकलने का तरीक़ा खोजना - तो आपके मन में इस तरह के विचार आते है, जैसे, "कोई उम्मीद नहीं है। सब कुछ चला गया है। मैं इसे हासिल नहीं कर सकता; यह स्थिति निराशाजनक है।" मन ऐसे काम नहीं करता, मन के नियम इस तरह काम करते है: "जैसा मैं अंदर से सोचता और महसूस करता हूँ, वैसा ही मेरा बाहरी जगत है; यानि, मेरा शरीर, आर्थिक स्थिति, परिवेश, सामाजिक स्थिति और संसार तथा मनुष्यों के साथ मेरे बाहरी संबंध के सारे रूप।“ आपकी आंतरिक, मानसिक गतिविधियाँ और चित्र आपके जीवन के बाहरी धरातल को शासित करती हैं, control करती हैं और दिशा देती हैं।

प्रार्थना करे और कृतज्ञ हो

        आप अमीरी हासिल कर सकते हैं, जब आप इस तथ्य को जान लेते हैं कि प्रार्थना विवाह का उत्सव है। यह उत्सव मनोवैज्ञानिक है; आप अपनी अच्छाई या अपनी इच्छा पर मानसिक रूप से मनन करते हैं (मानसिक रूप से खाते हैं), जब तक कि आप इसके साथ एक नहीं हो जाते।

        Author दिन में बार-बार यह कहने की सलाह देते है, "ईश्वर मेरी आपूर्ति का स्त्रोत हैं और मेरी सारी आवश्यकताएँ हर पल, हर जगह पूरी हो रही हैं।" और "मेरी सारी आर्थिक और अन्य ज़रूरतें समय के हर पल और हर जगह पूरी हो रही हैं; हमेशा दैवी समृद्धि है।" इस सरल कथन को बार-बार, अक्सर, जानते-बूझते हुए और समझदारी से दोहराए जाने पर आपके मन में समृद्धि की चेतना भर जाएगी।

        इस संसार में पशुओं के जीवन के बारे में सोचें और अंतरिक्ष की सारी आकाशगंगाओं के बारे में सोचें, जिनकी परवाह एक असीम प्रज्ञा कर रही है। ग़ौर करें कि प्रकृति कितनी उदार, प्रचुर और अतिशय है। समुद्र की मछलियों के बारे में सोचें, जिन्हें खाना मिल रहा है, साथ ही ”आसमान के पक्षियों“ के बारे में भी सोचें।

        दैवी बुद्धिमत्ता को अपना मार्गदर्शक बनने दें। अपने भीतर की बुद्धिमत्ता को सभी तरीक़ों से अपना नेतृत्व करने दें, मार्गदर्शन करने दें और शासित करने दें। अपना आग्रह इस अंदर वास करने वाली उपस्थिति के हवाले कर दें और अपने दिल तथा आत्मा में जान लें कि यह चिंता को दूर कर देगी, घाव को भर देगी और आपकी आत्मा को दोबारा समभाव व शांति तक पहुँचा देगी। अपने दिल और दिमाग़ को खोलें और कहें, ”ईश्वर मेरा पायलट है। वह मेरा नेतृत्व करता है। वह मुझे समृद्ध बनाता है। वह मेरा परामर्शदाता है।“, ”मैं एक मार्ग हूँ, जिसके ज़रिये ईश्वर की दौलत अनंत रूप से, प्रचुरता में और मुक्तता से प्रवाहित होती है।“ इस प्रार्थना को अपने दिल पर लिख लें, इसे अपने दिमाग़ पर अंकित कर लें। ईश्वर की महिमा की प्रकाश-रेखा पर केंद्रित रहें।

        जो मनुष्य अपने मन की आंतरिक कार्यप्रणाली नहीं जानता है, वह बोझ, चिंताओं और तनावों से भरा रहता है। वह यह नहीं सीख पाया हैं कि कैसे अपना बोझ अंदर वास करने वाली उपस्थिति पर डालकर मुक्त हुआ जाता है।

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