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रचनात्मक तरीक़े से कैसे सोचें? | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi

How to Think Creatively? | Badi Soch Ka Bada Jadoo | The Magic of Thinking Big

रचनात्मक तरीक़े से कैसे सोचें? | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi
रचनात्मक तरीक़े से कैसे सोचें? | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi 

        💕Hello Friends,आपका स्वागत है www.learningforlife.cc में। दोस्तों इस पोस्ट में "Badi Soch Ka Bada Jadoo" by David J. Schwartz book से रचनात्मक तरीक़े से कैसे सोचें? यह बताया जा रहा है। जिससे किसी भी काम को करने के नए, सुधरे हुए तरीक़े खोज सकेंगे और बिज़नेस में, घर में, समाज में, सफल तालमेल बना पाएंगे।

        सबसे पहले तो रचनात्मक सोच को लेकर फैली एक ग़लतफ़हमी को दूर कर लें। न जाने क्यों Science, इंजीनियरिंग, literature और Art को ही रचनात्मक काम माना जाता है। ज़्यादातर लोगों की नज़र में रचनात्मक सोच का अर्थ होता है बिजली या पोलियो वैक्सीन की खोज, या novel लिखना या color television का आविष्कार करना। निश्चित रूप से ये तमाम उपलब्धियाँ रचनात्मक सोच का परिणाम हैं। अंतरिक्ष को इंसान इसीलिए जीत पाया, क्योंकि उसने रचनात्मक सोच का सहारा लिया। हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि रचनात्मक सोच का संबंध केवल कुछ ख़ास व्यवसायों से नहीं होता, न ही अति बुद्धिमान लोगों से इसका कोई विशेष संबंध होता है।

        फिर, रचनात्मक सोच क्या है? रचनात्मक सोच का अर्थ है किसी भी काम को करने के नए, सुधरे हुए तरीक़े खोजना। For Example:
  1. कम आमदनी वाला परिवार अपने बच्चे को किसी मशहूर यूनिवर्सिटी में भेजने की योजना बनाता है।
  2. कोई परिवार अपने आस–पास की बहुत बुरी जगह को सबसे सुंदर जगह में बदल देता है।
  3. कोई पादरी ऐसी योजना बनाता है जिससे रविवार शाम की उपस्थिति दुगुनी हो जाती है।
  4. सेल्समेन “असंभव” ग्राहक को सामान बेचने के तरीक़े ढूँढ़ता हैं।
  5. माता पिता रचनात्मक रूप से बच्चों को व्यस्त रखते हैं।
  6. मैनेजर ऐसा उपाय करता हैं कि उसके कर्मचारी दिल लगाकर काम करें, या
  7. आप किसी “निश्चित” झगड़े को रोक लेते हैं।
        हर जगह सफलता इसी बात में छुपी होती है कि आप चीज़ों को बेहतर तरीक़े से करने के उपाय किस तरह खोजते हैं, फिर चाहे वह सफलता घर में हो, काम–धंधे में हो या समाज में हो।

अब बात करते है कि कैसे हम अपनी रचनात्मक सोच को विकसित कर सकते हैं और इसकी आदत डाल सकते हैं।

        एक मूलभूत सत्य जान लें- किसी भी काम को करने के लिए पहले आपको यह विश्वास करना होगा कि इसे किया जा सकता है। एक बार आप यह सोच लें कि यह काम संभव है तो फिर आप उसे करने का तरीक़ा भी सोच ही लेंगे। जब आप यह विश्वास करते हैं कि कोई काम असंभव है, तो आपका दिमाग़ आपके सामने यह सिद्ध कर देता है कि यह क्यों असंभव है। परंतु जब आप विश्वास करते हैं, सचमुच विश्वास करते हैं कि कोई काम किया जा सकता है, तो आपका दिमाग़ आपके लिए काम में जुट जाता है और तरीक़े ढूँढ़ने में आपकी मदद करता है। यह विश्वास कि कोई काम किया जा सकता है, रचनात्मक समाधानों का रास्ता खोल देता है। यह विश्वास कि कोई काम नहीं किया जा सकता, असफल व्यक्तियों की सोच है।

        जो लोग पारंपरिक तरीके़ से सोचते है उनके दिमाग़ को लक़वा मार जाता है। वे तर्क देते है, “ऐसा सदियों से होता आ रहा है। इसलिए यह अच्छा ही होगा और इसे ऐसे ही बने रहने देना चाहिए। बदलने का जोखिम क्यों उठाया जाए ?” “औसत” लोग हमेशा प्रगति से चिढ़ते हैं। कई लोगों ने तो मोटरगाड़ी का विरोध इस आधार पर किया था कि प्रकृति ने इंसान को पैदल चलने या घोड़े की सवारी करने के लिए बनाया था। कई लोगों को हवाईजहाज़ का विचार इसलिए पसंद नहीं आया था क्योंकि इंसान को पक्षियों के लिए "आरक्षित” क्षेत्र में दख़ल देने का कोई “अधिकार” नहीं था। बहुत से लोग अब भी मानते हैं कि इंसान की जगह अंतरिक्ष में नहीं है। एक मिसाइल विशेषज्ञ ने हाल ही में इस तरह की सोच का जवाब दिया। डॉ. वॉन ब्रॉन का कहना है, “मनुष्य की जगह वहीं है, जहाँ मनुष्य जाना चाहता है।”

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        रचनात्मक सोच की सबसे बड़ी दुश्मन है–पारंपरिक सोच। पारंपरिक सोच आपके दिमाग़ पर बर्फ़ की तह जम जाती है, आपकी प्रगति को रोक देती है, आपकी रचनात्मक शक्ति को विकसित नहीं होने देती। पारंपरिक सोच से जूझने के तीन तरीके़ हैं:

1.नए विचारों का स्वागत करें।

        इन विचारो को नष्ट करें- "यह काम नहीं करेगा”, “इसे किया ही नहीं जा सकता”, “यह बेकार है”, और “यह मूर्खतापूर्ण है।” Author के एक सफल दोस्त जो बीमा कंपनी में अच्छे पद पर है। उसने कहा, “मैं इस बात का दावा नहीं करता कि मैं इस बिज़नेस में सबसे स्मार्ट आदमी हूँ। परंतु मुझे लगता है कि मैं बीमा उद्योग में सबसे अच्छा स्पंज हूँ। मैं सारे अच्छे विचारों को सोख लेता हूँ।”

2.प्रयोगशील व्यक्ति बनें।

        बैंधे-बंधाए रुटीन को तोड़ें। नए रेस्तराँओं में जाएँ, नई पुस्तकें पढ़े, नए थिएटर में जाएँ, नए दोस्त बनाएँ, किसी दिन अलग रास्ते से काम पर जाएँ, इस साल अलग ढँग से छुट्टियाँ मनाएँ, इस सप्ताह के अंत में कुछ नया और अलग करें। अगर आप डिस्ट्रीब्यूशन का काम करते हैं, तो प्रॉडक्शन, अकाउंटिंग, फ़ाइनैन्स और बिज़नेस के दूसरे पहलुओं को सीखने में रुचि लें। इससे आपकी सोच व्यापक होगी और आप ज़्यादा ज़िम्मेदारी उठाने क़ाबिल बन सकेंगे।

3.प्रगतिशील बनें, प्रगतिविरोधी न बनें।

        ऐसा न कहें, “मैं जहाँ नौकरी करता था, वहाँ यह काम इस तरीके़ से होता था, इसलिए हमें यहाँ भी इसे उसी तरीके़ से करना चाहिए” बल्कि यह कहें, “जहाँ मैं नौकरी करता था, वहाँ पर यह काम इस तरीके़ से होता था। इसे बेहतर तरीके़ से किस तरह किया जा सकता है?” पीछे ले जाने वाली बातें न सोचें, प्रगति का विरोध न करें। आगे ले जाने वाली बातें सोचें, प्रगतिशील तरीके़ से सोचें। सिर्फ़ इसलिए कि, बचपन में आप सुबह पेपर बाँटने या गाय का दूध निकालने के लिए 5:30 बजे उठ जाते थे, आप अपने बच्चों से ऐसा करने की उम्मीद नहीं रख सकते।

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        बिज़नेस में, घर में, समाज में, सफल तालमेल होता है। - अपने काम को लगातार बेहतर तरीके़ से करते रहें (अपने काम की क्वालिटी सुधारें) और आप जितना पहले करते थे, उससे ज़्यादा करें (अपने काम की क्वांटिटी बढ़ाएँ)। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा करने से आपको फ़ायदा होगा? दो क़दम की इस तकनीक को use करे :

1.ज़्यादा काम करने के अवसर को उत्साहपूर्वक स्वीकार करें।

        नई ज़िम्मेदारी के लिए आपसे पूछा जा रहा है, इससे यह साबित होता है कि आपके बॉस को आपकी क्षमता पर भरोसा है। अपनी नौकरी में ज़्यादा ज़िम्मेदारी लेने से आप बाक़ी लोगों से अलग दिखते हैं और इससे पता चलता है कि आप उनसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं। जब आपके पड़ोसी आपसे किसी मामले में पहल करने को कहें, तो उनकी बात मान लें। इससे आपको समाज में लीडर बनने में मदद मिलती है।

2.इस बात पर ध्यान केंद्रित करें, “मैं इस काम को किस तरह और ज़्यादा कर सकता हूँ?”

        आपको इस सवाल के रचनात्मक जवाब मिल जाएँगे। कुछ जवाब इस तरह के होंगे कि आप अपने वर्तमान काम को योजनाबद्ध तरीके़ से करें या अपनी रोज़मरा की गतिविधियों का शॉर्टकट ढूँढ़ें या महत्वहीन कामों को करना पूरी तरह छोड़ दें। ज़्यादा काम करने के रास्ते आपको मिल ही जाएँगे।

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        Author ने सभी तरह के सैकड़ों लोगों के इंटरव्यू लेने के बाद, यह खोजा है - जो आदमी जितना बड़ा होता है, वह आपको बोलने का उतना ही ज़्यादा मौक़ा देता है; जो आदमी जितना छोटा होता है, वह आपके सामने उतना ही ज़्यादा बोलता है। यह भी नोट करें : हर क्षेत्र में चोटी के लीडर्स सलाह सुनने में ज़्यादा समय लगाते हैं, सलाह देने में कम समय लगाते हैं। जब कोई लीडर निर्णय लेता है तो वह पूछता है, “आप इस बारे में क्या सोचते हैं?” “आपका सुझाव क्या है ?” “आप इन परिस्थितियों में क्या करते ?” “आपको यह कैसा लगता है?”

पूछने और सुनने के माध्यम से अपनी रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए इस 3 steps को follow करे:

1.दूसरे लोगों को बोलने के लिए प्रोत्साहित करें।

        व्यक्तिगत चर्चा में या समूह बैठकों में लोगों से ऐसे आग्रह करें, “मुझे अपना अनुभव बताएँ.” या “आपको क्या लगता है इस बारे में क्या किया जाना चाहिए . . . ? ” “आपको क्या लगता है सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है ?” दूसरे लोगों को बोलने के लिए प्रोत्साहित करें और इससे आपको दो फ़ायदे होंगे। आपका दिमाग़ उस कच्चे माल को सोख लेगा जिसे आप रचनात्मक विचार में बदल सकते हैं। इसके अलावा आपके बहुत सारे दोस्त भी बन जाएँगे।

2.अपने विचारों को दूसरों के सामने सवालों के रूप में रखें।

        दूसरे लोगों को मौक़ा दें कि वे आपके विचारों को बेहतर शक्ल दें। "आप इस बारे में क्या सोचते हैं" की शैली में सुझाव दें। जिद्दी न बनें। किसी नए विचार को इस तरह प्रस्तुत न करें जैसे यह सीधा आसमान से आया हो। पहले थोड़ा-सा अनौपचारिक शोध कर लें। देखें कि इस विचार के बारे में आपके साथियों की क्या प्रतिक्रिया है। अगर आप ऐसा करते हैं, तो यक़ीनन आपका विचार पहले से बेहतर हो जाएगा।

3.सामने वाला जो कह रहा है, उसे ध्यान से सुनें।

        सुनने का मतलब यही नहीं होता कि आप अपना मुँह बंद रखें। सुनने का मतलब है कि जो कहा जा रहा है, आपका पूरा ध्यान उसी तरफ़ है। ज़्यादातर लोग सुनने के बजाय सुनने का नाटक करते हैं। वे सामने वाले की बात ख़त्म होने का इंतज़ार करते हैं, ताकि वे अपनी बात कहना शुरू कर सकें। सामने वाले की बात पूरे ध्यान से सुनें। उसका मूल्यांकन करें। इसी तरह आप अपने दिमाग़ के लिए कच्चा माल इकट्ठा कर सकते हैं।

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        हमारे दिमाग में बहुत सारे विचार चलते है जिनमे से कुछ ही विचारों के फल हमें मिल पाते हैं। विचार बहुत जल्दी नष्ट होने वाले बीज हैं। अगर हम रखवाली न करें, तो गिलहरियाँ (नकारात्मक रूप से सोचने वाले लोग) हमारे ज़्यादातर विचारों को नष्ट कर देंगी। विचार जब पैदा होते हैं, तभी से उनकी ख़ास देखभाल करनी होती है। और तब तक करनी होती है जब तक कि वे बड़े न हो जाए और उनमें फल न लगने लगें। अपने विचारों के दोहन के लिए और उन्हें विकसित करने के लिए इन तीन तरीकों का प्रयोग करें :

1.विचारों को बच निकलने का मौक़ा न दें। उन्हें लिख लें।

        हर दिन आपके दिमाग़ में बहुत से अच्छे विचार आते हैं, परंतु वे जल्दी ही मर जाते हैं क्योंकि आपने उन्हें काग़ज़ पर नहीं लिखा है और आप कुछ समय बाद उन्हें भूल जाते हैं। नए विचारों की पहरेदारी के लिए याददाश्त एक कमज़ोर चौकीदार है। अपने पास नोटबुक या डायरी रखें। जब भी आपके दिमाग़ में कोई अच्छा विचार आए, उसे लिख लें।

2.अपने विचारों का अवलोकन करें।

        इन विचारों को एक फ़ाइल में लगा लें। इसके बाद आप अपने विचारों का नियमित रूप से विश्लेषण करें। जब आप इन विचारों का अवलोकन करेंगे तो आपको कुछ विचार बेकार या महत्वहीन लगेंगे। उन्हें बाहर निकाल दें। परंतु जब तक आपको कोई विचार दमदार लगता है, उसे अंदर ही रहने दें।

3.अपने विचार को विकसित करें।

        विचार को फलने–फूलने दें। इसके बारे में सोचते रहें। इस विचार को इससे संबंधित विचारों के साथ बाँध दें। अपने विचार से संबंधित सामग्री पढ़ते रहें। सभी पहलुओं की जाँच कर लें। फिर जब समय आए, तो काम में जुट जाएँ और अपनी नौकरी, अपने भविष्य को सुधारने के लिए इसका उपयोग करें।

संक्षेप में, इन उपायों का प्रयोग करें और रचनात्मक तरीक़े से सोचें

1.विश्वास करें कि काम किया जा सकता है। जब आप यह विश्वास करते हैं कि आप कोई काम कर सकते हैं, तो आपका दिमाग़ उसे करने के तरीक़े ढूँढ़ ही लेगा। इसका कोई रास्ता है, यह सोचने भर से रास्ता निकालना आसान हो जाता है। अपनी सोचने और बोलने की शब्दावलियों से “असंभव”, “यह काम नहीं करेगा,” “मैं यह नहीं कर सकता,” “कोशिश करने से कोई फ़ायदा नहीं” जैसे वाक्य निकाल दें।

2.परंपरा को अपने दिमाग़ को कमज़ोर न बनाने दें। नए विचारों को स्वीकार करें। प्रयोगशील बनें। नई शैलियों को आज़माएँ। अपने हर काम में प्रगतिशील रहैं।

3.अपने आपसे हर रोज़ पूछें, “मैं इसे किस तरह बेहतर तरीक़े से कर सकता हूँ?” आत्म-सुधार की कोई सीमा नहीं है। जब आप ख़ुद से पूछते हैं, “मैं किस तरह बेहतर कर सकता हूँ” तो अच्छे जवाब अपने आप उभरकर सामने आएँगे। कोशिश करके देखें।

4.ख़ुद से पूछें, “मैं यह काम और ज़्यादा किस तरह कर सकता हूँ ?” काम करने की क्षमता एक मानसिक अवस्था है। जब आप ख़ुद से यह सवाल पूछेंगे तो आपके दिमाग़ में अच्छे शॉर्टकट अपने आप आ जाएँगे। बिज़नेस में सफलता का संयोग है : अपने काम को लगातार बेहतर तरीक़े से करते रहें (अपने काम की क्वालिटी सुधारें) और आप जितना पहले करते थे, उससे ज़्यादा करें (अपने काम की क्वांटिटी बढ़ाएँ)।

5.पूछने और सुनने की आदत डालें। पूछें और सुनें और आपको सही निर्णय पर पहुँचने के लिए कच्चा माल मिल जाएगा। याद रखें : बड़े लोग लगातार सुनते हैं; छोटे लोग लगातार बोलते हैं।

6.अपने मस्तिष्क को व्यापक बनाएँ। दूसरों के विचारों से प्रेरणा लें। ऐसे लोगों के साथ उठें–बैठें जिनसे आपको नए विचार, काम करने के नए तरीक़े सीखने को मिल सकते हों। अलग–अलग व्यवसायों और सामाजिक रुचियों वाले लोगों से मिलें।

        ☝ यह Summary है "बड़ी सोच का बड़ा जादू | The Magic of Thinking Big" By David J. Schwartz book के 5th chapter की। यदि detail में पढ़ना चाहते है तो इस book को यहां से खरीद सकते है 👇


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