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चाणक्य नीति | Chanakya Neeti Book Summary In Hindi

चाणक्य नीति | Chanakya Neeti Book Summary In Hindi

चाणक्य नीति | Chanakya Neeti Book Summary In Hindi
चाणक्य नीति | Chanakya Neeti Book Summary In Hindi
        💕Hello Friends,आपका स्वागत है learningforlife.cc में। चाणक्य कहते है मैं कौटिल्य सबसे पहले तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को सिर झुकाकर प्रणाम करता हूं। इस पुस्तक में मैंने अनेक शास्त्रों से चुन-चुनकर राजनीति की बातें इक्कठी की हैं। यहां मैं इन्हीं का वर्णन करता हूं। इस नीतिशास्त्र में धर्म की व्याख्या करते हुए क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए; क्या अच्छा है, क्या बुरा है इत्यादि ज्ञान का वर्णन किया गया है। इसका अध्ययन करके इसे अपने जीवन में उतारने वाला मनुष्य ही श्रेष्ठ मनुष्य है। मैं लोगों की भलाई की इच्छा से राजनीति के उस रहस्य वाले पक्ष को प्रस्तुत करूंगा, जिसे केवल जान लेने मात्र से ही व्यक्ति स्वयं को सर्वज्ञ समझ सकता है। तो इस पोस्ट में कुछ चाणक्य नीती दी जा रही है जिन्हे follow करके आप अपनी life को बेहतर बना सकते है। Let's begin.... 

  • चाहे कोई भी कितना ही समझदार क्यों न हो किन्तु मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दुःखियों-रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दुःखी हो ही जाता हैं, साधारण आदमी की तो बात ही क्या।
  • चार चीजें किसी भी व्यक्ति के लिए जीती-जागती मृत्यु के समान हैं‒दुश्चरित्र पत्नी, दुष्ट मित्र, जवाब देने वाला  नौकर‒इन सबका त्याग कर देना चाहिए। घर में रहनेवाले सांप को कैसे भी, मार देना चाहिए। ऐसा न करने पर व्यक्ति के जीवन को हर समय खतरा बना रहता है।
  • विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए। धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए। किन्तु अपनी रक्षा का प्रश्न सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो भी नहीं चूकना चाहिए। 
  • जिस देश में सम्मान न हो, जहां कोई आजीविका न मिले, जहां अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहां विद्या अध्ययन संभव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए।
  • जिस शहर में कोई भी धनवान व्यक्ति न हो। जिस देश में वेदों को जानने वाले विद्वान न हों। जिस देश में कोई राजा या सरकार न हो। जिस शहर या गांव में कोई वैद्य (डॉक्टर) न हो। जिस स्थान के पास कोई भी नदी न बहती हो। इन स्थानों पर एक दिन भी नहीं रहना चाहिए। 
  • जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए।
  • किसी महत्त्वपूर्ण कार्य पर भेजते समय सेवक की पहचान होती है। दुःख के समय में परिजनों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है।
  • जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है, उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है। अनिश्चित तो स्वयं नष्ट होता ही है। अभिप्राय यह है कि जिस चीज का मिलना पक्का निश्चित है, उसी को पहले प्राप्त करना चाहिए या उसी काम को पहले कर लेना चाहिए। ऐसा न करके जो व्यक्ति अनिश्चित यानी जिसका होना या मिलना पक्का न हो, उसकी ओर पहले दौड़ता है, उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है अर्थात् मिलनेवाली वस्तु भी नहीं मिलती।
  • लंबे नाखून वाले हिंसक पशुओं, नदियों, बड़े-बड़े सींग वाले पशुओं, शस्त्रधारियों, स्त्रियों और राज-परिवारों का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये कब घात कर दें, चोट पहुंचा दें कोई भरोसा नहीं।
  • विष में से भी अमृत तथा गंदगी में से भी सोना ले लेना चाहिए। नीच व्यक्ति से भी उत्तम विद्या ले लेनी चाहिए और दुष्ट कुल से भी स्त्री-रत्न को ले लेना चाहिए।
  • जिस मनुष्य का पुत्र आज्ञाकारी होता है, सब प्रकार से कहने में होता है, पत्नी धार्मिक और उत्तम चाल-चलन वाली होती है, सद्गृहिणी होती है तथा जो अपने पास जितनी भी धन-सम्पत्ति है, उसी में खुश रहता है, संतुष्ट रहता है, ऐसे व्यक्ति को इसी संसार में स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। उसके लिए पृथ्वी में ही स्वर्ग हो जाता है।
  • पिता की आज्ञा को माननेवाला और सेवा करनेवाला ही पुत्र कहा जाता है। 
  • अपने बच्चों का सही पालन-पोषण, देखरेख करनेवाला और उन्हें उचित शिक्षा देकर योग्य बनानेवाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थ में पिता है। 
  • जिस पर विश्वास हो, जो विश्वासघात न करे, वही सच्चा मित्र होता है। पति को कभी दुःखी न करनेवाली तथा सदा उसके सुख का ध्यान रखनेवाली ही पत्नी कही जाती है।
  • मन में सोचे हुए कार्य को मुंह से बाहर नहीं निकालना चाहिए। मंत्र के समान गुप्त रखकर उसकी रक्षा करनी चाहिए। गुप्त रखकर ही उस काम को करना भी चाहिए।
  • पिता का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है कि पुत्र को अच्छी शिक्षा दे। शिक्षा केवल विद्यालय में ही नहीं होती। अच्छे आचरण की, व्यवहार की शिक्षा देना पिता का पावन कर्त्तव्य है। अच्छे आचरण वाले पुत्र ही अपने कुल का नाम ऊंचा करते हैं।
  • बच्चे को न पढ़ाने वाली माता शत्रु तथा पिता वैरी के समान होते हैं। बिना पढ़ा व्यक्ति पढ़े लोगों के बीच में हंसों में कौए के समान शोभा नहीं पाता।
  • तेज बहाव वाली नदी के किनारे लगने वाले वृक्ष, दूसरे के घर में रहने वाली स्त्री, मन्त्रियों के बिना राजा लोग‒ये सभी शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
  • दक्षिणा ले लेने पर ब्राह्मण यजमान को छोड़ देते हैं, विद्या प्राप्त कर लेने पर शिष्य गुरु को छोड़ देते हैं और वन में आग लग जाने पर वन के पशु उस वन को त्याग देते हैं।
  • दुराचारी, दुष्ट स्वभाव वाला, बिना किसी कारण दूसरों को हानि पहुंचाने वाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्रता रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है क्योंकि संगति का प्रभाव बिना पड़े नहीं रहता है।
  • किसके कुल में दोष नहीं होता? रोग किसे दुःखी नहीं करते? दुःख किसे नहीं मिलता और निरंतर सुखी कौन रहता है अर्थात् कुछ न कुछ कमी तो सब जगह है और यह एक कड़वी सच्चाई है। दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो कभी बीमार न पड़ा हो और जिसे कभी कोई दुःख न हुआ हो या जो सदा सुखी हो रहा हो तो फिर संकोच या दुःख किस बात का?
  • आचरण से व्यक्ति के कुल का परिचय मिलता है। बोली से देश का पता लगता है। आदर-सत्कार से प्रेम का तथा शरीर को देखकर व्यक्ति के भोजन का पता चलता है।
  • दुष्ट और सांप, इन दोनों में सांप अच्छा है, न कि दुष्ट। सांप तो एक ही बार डसता है, किन्तु दुष्ट तो पग-पग पर डसता रहता है। इसलिए दुष्ट से बचकर रहना चाहिए।
  • मूर्ख व्यक्ति मनुष्य होते हुए भी पशु ही है। जैसे पांव में चुभा हुआ कांटा दिखाई तो नहीं पड़ता पर उसका दर्द सहन नहीं किया जा सकता है। इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति के शब्द दिखाई नहीं देते, किन्तु हृदय में शूल की तरह चुभ जाते हैं। मूर्ख को त्याग देना ही उचित रहता है।
  • कोयल का रूप उसका स्वर है। पतिव्रता होना ही स्त्रियों की सुंदरता है। कुरूप लोगों का ज्ञान ही उनका रूप है तथा तपस्वियों का क्षमा भाव ही उनका रूप है।
  • अधिक सुंदरता के कारण ही सीता का हरण हुआ था, अति घमंडी हो जाने पर रावण मारा गया तथा अत्यन्त दानी होने से राजा बलि को छला गया। इसलिए अति सभी जगह वर्जित है।
  • वन में सुंदर खिले हुए फूलों वाला एक ही वृक्ष अपनी सुगंध से सारे वन को सुगंधित कर देता है। इसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा कर देता है।एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने पर सारा वन जल जाता है। इसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल को बदनाम कर देता है।
  • पांच वर्ष की अवस्था तक ही पुत्र के साथ लाड़-प्यार करना चाहिए। इसके बाद पन्द्रह वर्ष की अवस्था तक उसे कठोर अनुशासन में रखना चाहिए। किन्तु जब पुत्र सोलहवें वर्ष में प्रवेश कर जाए, तो वह वयस्क हो जाता है। फिर उसके साथ एक मित्र की तरह सम्मान का व्यवहार करना चाहिए।
  • जहां मूर्खों का सम्मान नहीं होता, अन्न का भंडार भरा रहता है और जहां पति-पत्नी में कलह नहीं हो, वहां लक्ष्मी स्वयं आती है।
  • प्राणी जब मां के गर्भ में ही होता है, तभी पांच चीजें उसके भाग्य में लिख दी जाती है - आयु, कर्म, धन-सम्पत्ति, विद्या और मृत्यु।
  • जब तक शरीर स्वस्थ रहता है, तब तक मृत्यु का भी भय नहीं रहता। अतः इसी समय में आत्मा और परमात्मा को पहचानकर आत्मकल्याण कर लेना चाहिए। मृत्यु हो जाने पर कुछ भी नहीं किया जा सकता।
  • ये सब बातें व्यक्ति को भारी दुःख देती हैं - यदि दुष्टों (लम्पटों) के बीच में रहना पड़े, नीच खानदान वाले की सेवा करनी पड़े, घर में झगड़ालू-कर्कशा पत्नी हो, पुत्र मूर्ख हो, पढ़े-लिखे नहीं, बेटी विधवा हो जाए - ये सारे दुःख बिना आग के ही व्यक्ति को अन्दर ही अन्दर जला डालते हैं।
  • सांसारिक ताप से जलते हुए लोगों को तीन ही चीजें आराम दे सकती हैं‒सन्तान, पत्नी तथा सज्जनों की संगति।
  • जिसका आचरण पवित्र हो, कुशल गृहिणी हो, जो पतिव्रता हो, जो अपने पति से सच्चा प्रेम करे और उससे कभी झूठ न बोले, वही स्त्री पत्नी कहलाने योग्य है। जिस स्त्री में ये गुण नहीं होते, उसे पत्नी नहीं कहा जा सकता।
  • जिस धर्म में दया न हो, उस धर्म को छोड़ देना चाहिए। जो गुरु विद्वान न हो, उसे त्याग देना चाहिए। गुस्सैल पत्नी का भी त्याग कर देना चाहिए। जो भाई-बन्धु, सगे-संबंधी प्रेम न रखते हों, उनसे सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए।
  • घिसने, काटने, तपाने और पीटने, इन चार प्रकारों से जैसे सोने का परीक्षण होता है, इसी प्रकार त्याग , स्वभाव , गुणों और कार्यों से पुरुष की परीक्षा होती है।
  • आपत्तियों और संकटों से तभी तक डरना चाहिए जब तक वे दूर हैं, परंतु वे संकट सिर पर आ जाएं तो उस पर बिना शंका किए मुकाबला करना चाहिए, उन्हें दूर करने का उपाय करना चाहिए।
  • मूर्ख-पंडितों से; निर्धन-धनियों से; वेश्याएं-कुलवधुओं से तथा विधवाएं- सुहागिनों से द्वेष करती हैं।
  • आलस्य से विद्या नष्ट हो जाती है। दूसरे के हाथ में जाने से धन नष्ट हो जाता है। कम बीज से खेत तथा बिना सेनापति के सेना नष्ट हो जाती है।
  • काम-वासना मनुष्य का सबसे बड़ा रोग है, मोहमाया या अज्ञान सबसे बड़ा शत्रु है, क्रोध के समान कोई आग नहीं है तथा ज्ञान के समान कोई सुख नहीं है।
  • समुद्र में वर्षा व्यर्थ है। तृप्त को भोजन कराना व्यर्थ है। धनी को दान देना व्यर्थ है और दिन में दीपक जलाना व्यर्थ है।
  • बादल के समान कोई जल नहीं होता। अपने बल के समान कोई बल नहीं होता। आंखों के समान कोई ज्योति नहीं होती और अन्न के समान कोई प्रिय वस्तु नहीं होती।
  • निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं। मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष प्राप्ति की इच्छा करते हैं और इस प्रकार जो प्राप्त है, सभी उससे आगे की कामना करते हैं।
  • प्राणी स्वयं कर्म करता है और स्वयं उसका फल भोगता है। स्वयं संसार में भटकता है और स्वयं इससे मुक्त हो जाता है।
  • दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा सुखी कैसे रह सकती है। दुष्ट मित्र से आनंद कैसे मिल सकता है। दुष्ट पत्नी से घर में सुख कैसे हो सकता है, तथा दुष्ट-मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से यश कैसे मिल सकता है!
  • छोटा हो या बड़ा, जो भी काम करना चाहें, उसे अपनी पूरी शक्ति लगाकर करें? यह गुण हमें शेर से सीखना चाहिए।
  • बगुले के समान इन्द्रियों को वश में करके देश, काल एवं बल को जानकर विद्वान अपना कार्य सफल करें। 
  • श्रेष्ठ और विद्वान व्यक्तियों को चाहिए कि वे गधे से तीन गुण सीखें। जिस प्रकार अत्यधिक थका होने पर भी वह बोझ ढोता रहता है, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी आलस्य न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति और सिद्धि के लिए सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए, कर्त्तव्य पथ से कभी विमुख नहीं होना चाहिए। कार्यसिद्धि में ऋतुओं के सर्द और गर्म होने की भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार गधा सन्तुष्ट होकर जहां-तहां चर लेता है, उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति को भी सदा संतोष रखकर, फल की चिन्ता किए बिना, यथावत् कर्म में प्रवृत्त रहना चाहिए।
  • समय पर जागना, लड़ना, भाईयों को भगा देना और उनका हिस्सा स्वयं झपटकर खा जाना, ये चार बातें मुर्गे से सीखें।
  • सावधान रहना, किसी पर विश्वास न करना और आवाज देकर औरों को भी इकट्ठा कर लेना, ये गुण कौए से सीखें।
  • अधिक भूखा होने पर भी थोड़े में ही संतोष कर लेना, गहरी नींद में होने पर भी सतर्क रहना, स्वामिभक्त होना और वीरता‒ये गुण कुत्ते से सीखने चाहिए।
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