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यथार्थ की पहचान | Hindi Motivational Story

यथार्थ की पहचान | Hindi Motivational Story

यथार्थ की पहचान | Hindi Motivational Story
यथार्थ की पहचान | Hindi Motivational Story

          💕Hello Friends,आपका स्वागत है learningforlife.cc में। काशी में पावन सलिला गंगा के तट पर मुनि का बड़ा आश्रम था। उसमें रहकर अनेक शिष्य वेद-वेदांत की शिक्षा ग्रहण करते थे। शिष्यों में एक का नाम दुष्कर्मा था। वह सब शिष्यों में सबसे ज्यादा आज्ञाकारी, मझदार और दयालु प्रवृत्ति का था। एक दिन उसके सहपाठी ने कहा, 'दुष्कर्म, जरा यह श्लोक समझा दो, मेरी समझ में नहीं आ रह। बड़ा ही कठिन है।

        'अरे, यह तो बहुत ही सरल है। अभी समझा देता हूं।' दुष्कर्मा ने सहपाठी को श्लोक समझा दिया। सभी मित्र उसे दुष्कर्मा के नाम से पुकारते थे। उसे बहुत बुरा लगता था क्योकि उसे अपना नाम पसंद नहीं था। एक दिन उसने मुनि से कहा, 'गुरूजी, मेरा कोई और नाम रख दीजिए। मुझे यह नाम अच्छा नहीं लगता। यह सुनकर मुनि मुस्कराए। फिर उन्होंने कहा, 'ठीक है, बेटा। पहले तुम देशाटन कर आओ। जब वापस आओगे तो तुम्हारा नाम बदल देंगे।'

         छुष्कर्मा गुरूजी के चरण स्पर्श करके देशाटन के लिए निकल पड़ा। वहा एक गांव में पहुंचा। वहां उसने देखा कि कुछ लोग कंधे पर एक शव को ले जा रहे हैं। उसने पीछे काफी लोग, राम नाम सत्य है' कहते हुए चल रहे थे। दुष्कर्मा ने एक आदमी से पूछा, 'भाई! मरने वाले का क्या नाम था?'
उस आदमी ने कहा, 'जीवा।
ऐ! जेवक भी कभी मरता है?' दुष्कर्मा ने हैरानी से पूछा।
बड़े मूर्ख हो। नाम से तो मात्र व्यक्ति को पहचाना जाता है।

        दुष्कर्मा उसकी बात पर विचार करता हुआ दूसरे गांव में पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक औरत एक लड़की को बुरी तरह पीट रही थी। यह देखकर दुष्कर्मा को दया आ गई। उसने पूछा, 'देवी! आप इसको क्यों पीट रही हैं?' यह मेरी नौकरानी है। इसे पैसे लेकर सामान लाने भेजा था और खाली हाथ वापस आ गई। औरत ने क्रोधित मुद्रा में कहा। दुष्कर्मा ने एक मुद्रा निकालकर उस औरत को दी और कहा, 'क्रिपया इसे न मारे।
एक आदमी से उसने पूछा, उस लड़की का नाम क्या है?'
एक आदमी बोला, 'उसका नाम लक्ष्मी है।
'नाम तो बहुत अच्छा है लेकिन नौकरी दूसरे के यहां करती है?'
'अजीब आदमी हो! नाम तो केवल पहचान के लिए होता है, अर्थ से क्या होता है।' यह कहकर वह आदमी आगे
चल दिया।

         शायद यह ठीक ही कहता है पर। अपने नाम से कुछ-कुछ संतुष्ट होकर दुष्कर्मा गांव छोड़कर वापस काशी की ओर लौट पड़ा। रास्ते में फिर उसे एक आदमी मिला। उसने कहा, 'भाई मैं रास्ता भूल गया हूं, मुझे काशी का रास्ता बता दोगे?'
दुष्कर्मा ने कहा, 'मैं भी वहीं जा रहा हूं। मेरे साथ चलो।' ।
दुष्कर्मा ने उससे पूछा, 'मित्र! तुम्हारा क्या नाम है?'
वह आदमी बोला, 'पंथक कहते हैं मुझे।
'पंथक होकर भी तुम रास्ता भूल गए? दुष्कर्मा ने व्यंग्यपूर्ण मुद्रा में कहा।
'क्यों मजाक करते हो? नाम से क्या लेना-देना। रास्ता तो कोई भी भटक सकता है। वह आदमी बोला, यह तो सबको पता है कि नाम से केवल आदमी की पहचान ही होती है।' तुम ठीक कहते हो। आखिर मुझे यथार्थ समझ में आ गया।' काशी पहुंचते ही दुष्कर्मा अपने गुरूजी के पास पहुंचा।

         क्या, अब भी तुम अपना नाम बदलना चाहोगे?' मुनि ने दुष्कर्मा से पूछा। 'गुरूजी, अब मैं समझ गया कि नाम से केवल व्यक्ति की पहचान होती है, मैं अपने वर्तमान नाम से ही संतुष्ट हूं।

निष्कर्ष 👇

व्यक्ति की पहचान उसके नाम से नहीं बल्कि उसके गुण-धर्म से होती है।

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